सोमवार, 14 जनवरी 2008

सब लोगन खों जैरामजी की

सभई जनों खों हमाई जैरामजी की.

6 टिप्पणियाँ:

Yunus Khan ने कहा…

जे अच्‍छे करो बड्डे तुमने । अब मुक्‍कालात होत रेहे । हम सोई बुंदेली आंय । दमोय में पैदा भए हते । कछु दिन सागर में पढ़ाई करी, गवरमेन्‍ट इस्‍कूल में । फिर उनवरसिटी में । एक काम करो । लिखवे को मानुस ने बनाओ । लिखई डालो । समझ गए । हम इंतजारी में हैं । नईं लिखो तो सोच लियो । उतईं आके बताहें । बुंदेली ठहरे । अब चलें । जैराम जी की

Sanjay Karere ने कहा…

जे ब्‍बात. हमें तो जो पतोइ ने हतो कि इते पूछ बन जै है. अब तो लिखबो सुरू करनेइ पड़ है, पड़बे वारे तो आनइ लगे. यूनूस भाई तुमाए गाना आना तो खूब सुनत रैत हैं बस कबउं चरचइ नईं हो पाई. खैर दमोय मैं हम सोई खूब रए हैं..सतना में पैदा होवे के बाद छोटे से हते जब दमोय आ गए थे. गवरमेंट इस्‍कूल में पड़त रए. अब सागर में डरे हैं. चलो आत रइयो... मिल के मजो करवी इतई पे. जैराम जी की.

Ramashankar ने कहा…

होली आने वाली है शुरुआत फाग व राई से हो तो बेहतर.

INDRA VIKRAM ने कहा…

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आग यहाँ के पानी में...
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पुष्प कुलश्रेष्ठ ने कहा…

उत्तम प्रयास है

Unknown ने कहा…
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